Article 370 Movie Review
Article 370 Movie Review बॉलीवुड और कश्मीर का एक पुराना रिश्ता रहा है। ठीक वैसा ही जैसे कश्मीर का आतंकवाद से है।
कश्मीर की खबसूरत वादियों में सालों से फिल्मों की शूंटिंग्स चलती आई है, लेकिन जैसे-जैसे घाटी के हालात बिगड़े वैसे-वैसे यहां फिल्मों की शूटिंग होना बंद होती चली गई। मगर अब धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं और धारा 370 हटाने के बाद वहां पर फिर से कुछ फिल्मों का निर्माण शुरू हो गया है।
ऐसी कड़ी में आगे जुड़ती है निर्माता आदित्य धर की नई फिल्म आर्टिकल 370 । ‘आर्टिकल 370’ को कश्मीर की कुछ रियल लोकेशंस पर फिल्माया गया है,इसके डायरेक्टर आदित्य सुहास जम्भाले है।
इलेक्शन का मौसम है और इस इलेक्शन के मौसम में बॉलीवुड भी कैसे पीछे रह सकता है।
लगता है कश्मीरआदित्य धर का सबसे प्रिय विषय बन चुका है। इसलिए उरी के बाद आर्टिकल 370 का पूरा प्लाट भी कश्मीर पर बेस है। ये फिल्म कश्मीर की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्या को फोकस मे लाती है।
आर्टिकल 370 की कहानी
बॉलीवुड में कश्मीर और आतंकवाद से जुड़ी कहानियों को पहले भी दिखाया जा चुका है लेकिन यह फिल्म कुछ हटके हैं. फिल्म की कहानी आर्टिकल 370 को हटाने की स्ट्रैटेजी के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म की शुरुआत में ही अजय देवगन कहानी का पूरा प्लाट सेट कर देते है। फिल्म की शुरुआत एक इंटेलिजेंस ऑफीसर जुनी अक्सर (यामी गौतम) के खुफिया मिशन से होती है जिसका मिशन है टेररिस्ट बुरहान वाणी को एलिमिनेट करना। जिस में वह कामयाब भी होती है, मगर उसके बाद घाटी में हिंसा फैल जाती है।
जिसके लिए जूनी यानी यामी गौतम को जिम्मेदार ठहराया जाता है. और उनका ट्रांसफर कर दिल्ली भेज दिया जाता है।
दिल्ली भी कश्मीर के हालातो से बहुत फिक्रमंद है। इसके बाद शुरू होता है कश्मीर की असली समस्या आर्टिकल 370 को ठीक से समझने , और इसको हटाने का रास्ता खोजने और अलगाववादी नेताओं की कूटनीति से निबटने का बेहद ही असंभव सा दिखने वाला काम।
सेंट्रल गवर्मेंट की सारी प्लानिंग कैसे स्टेप बाई स्टेप अमल में लाइ गई , और कैसे सारा तंत्र इसको कामयाब बनाने में जी जान से लगा रहा सब कुछ पूरी रिसर्च के साथ ये फिल्म पेश करने में कामयाब रही है। फिल्म में पुलवामा हमले के बाद के हालातो को बहुत ही संजीदा तरीके से प्रस्तुत किया गया है।.
टीम वर्क: Article 370 Movie Review
यामी गौतम अपना सर्वश्रेष्ठ देने में बिलकुल नहीं चूकी है। उनकी मेहनत साफ़ दिखाई देती है । एक्शन इमोशन और डयलॉग डिलीवरी के लिए उन्होंने जम कर मेहनत की है। वैसे भी ये उनके घर की ही फिल्म है तो इतना उनसे एक्सपेक्टेड ही था।
प्रियमणि ने पीएमओ की ज्वॉइंट सेक्रेटरी राजेश्वरी स्वामीनाथन के किरदार में जान फूक दी है। अरुण गोविल प्रधानमंत्री मोदी जैसे रूप में बहुत क्लासिक लगे है। किरण करमाकर ने गृहमंत्री के रूप में अमित शाह जी जैसा बनने की दिलोजान से कोशिश की है। क्योकि ये सब्जेक्ट गृह मंत्रायल के आधीन आता है इसलिए किरण को अच्छा खासा स्क्रीन स्पेस दिया गया है।
फिल्म की कहानी के लिए पूरी रिसर्च की गई है, और ये दिखता भी है। मगर साथ ही क्रिएटिव लिबर्टी का भी सही सही अनुपात में उपयोग कर के फिल्म को कमर्सियल लुक दिया गया है।
सिनेमैटोग्राफर सिद्धार्थ वासानी ने कश्मीर को बहुत खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है. उनके हर फ्रेम में ताज़गी महसूस होती है।
फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा सा स्लो चलता है मगर फिर भी आपको कुर्सी से उठने नहीं देता है। सेकेंड हाफ में फिल्म पूरी रवानगी में बहती महसूस होती है और आप को समय बीतने का अहसास ही नहीं होने देती। खासकर फिल्म का क्लाइमेक्स जो लगभग 30 मिनिट लम्बा है वो आपको जकड कर रखता है।
क्यों देखे
ये एक ऐसी साफ़ सुथरी फिल्म है जो मनोरंजन के साथ आर्टिकल 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे को सहजता से समझने का अवसर देती है। आप इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ बैठ कर देख सकते है। इंट्रस्टिंग सब्जेक्ट, संजीदा अभिनय , एक बांधे रखने वाली स्क्रिप्ट और खूबसूरत फिल्मांकन। फिल्म मे एक परफेक्ट टीम वर्क नज़र आता है।
क्यों न देखे
अगर आप आर्टिकल 370 हटने से खुश नहीं है, या किसी स्टार के बिना फिल्म नहीं देखना चाहते तब ही ये फिल्म शायद आप को पसंद न आये।
यह भी पड़े: MAIN ATAL HOON:कितनी अटल, कितनी विफल आइये जाने कैसी है