in which year did Amitabh Bachchan debut in Hindi Cinema?

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By N.K

in which year did amitabh bachchan debut in hindi cinema?  1969 में “सात हिन्दुस्तानी” फिल्म से अपना फ़िल्मी सफर शुरू करने वाले, इलाहाबाद के एक कायस्थ परिवार में जन्मे “अमिताभ बच्चन” अब अब 81 वर्ष के हो गए है।1942 का वो साल, जब भारत में आज़ादी की जंग अपने चरम पर थी तब 11 अक्टूबर को महान साहित्यकार “श्री हरिवंश राय बच्चन जी” के घर एक बालक का जन्म हुआ। तब किसे पता था की ये बच्चा आज़ादी के बाद भारतीय सिनेमा इतिहास का वो सबसे लोकप्रिय अभिनेता बनेगा जिसके नाम से सिनेमा के उस युग को कहा जायेगा “अमिताभ इरा”

जी हां हम बात कर रहे है सदी के महानायक “श्री अमिताभ बच्चन जी” की।

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“अमिताभ बच्चन” का बचपन

“अमिताभ बच्चन” का बचपन का नाम “इंकलाब” था जो आज़ादी के समय के मशहूर नारे “इंकलाब ज़िंदाबाद” से लिया गया था। 

लेकिन बाद में प्रसिद्ध कवि “सुमित्रानंदन पंत” जी  ने इनका नाम ‘अमिताभ’ रखा। जिसका मतलब होता है हमेशा रहने वाला उजाला या प्रकाश। 

ये नाम अमिताभ बच्चन जी के व्यक्तित्व से इतना मेल खाता है, की अब लगता है शायद सुमित्रा नंदन पंत जी ने पहले ही इनका सारा भविष्य देख लिया होगा तभी ये नाम दिया। 

डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के 2 बेटो में अमिताभ बड़े बेटे थे।  इनके छोटे भाई का नाम अजिताभ है।  इनकी माता श्रीमती तेज़ी बच्चन एक घरेलु महिला थी लेकिन उनकी थिएटर में गहरी रुचि थी।  इसका असर अमिताभ जी पर भी पड़ा और उन्होंने अभिनय को ही अपना करियर बनाया।

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सदी के इस महानायक का फ़िल्मी सफर साल 1969 में ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी फिल्म सात हिन्दुस्तानी से शुरू हुआ , जो आज भी बिना रुके जारी है। इस फिल्म के सात मुख्य कलाकारों में से एक अमिताभ ने अपनी पहली ही फिल्म में बेस्ट न्यूकमर का नेशनल अवार्ड अपने नाम किया।  हलाकि ये बात अलग है की ये फिल्म कुछ ख़ास नहीं कर पाई। 

इसके बाद साल 1971 में आई “आनंद” में  वो उस समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ एक डॉक्टर की भूमिका में नज़र आये और इसके लिए भी की बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड ले उड़े।  

इसके बाद आई परवाना, गुड्डी, बॉम्बे टू गोवा, रेशमा और शेरा आदि फिल्मो में अमिताभ जी को काम तो मिलता रहा मगर वो पहचान नहीं मिल पा रही थी जिसके वो हकदार थे।

फर्स्ट एंग्री यंग मैन ऑफ़ हिंदी सिनेमा

अब आता है साल 1973।  जब प्रकाश मेहरा जंजीर फिल्म प्लान कर रहे थे तब उनके जेहन में राजकुमार का नाम था।  लेकिन राजकुमार ने इस फिल्म को करने से इंकार कर दिया।  और इस तरह ये फिल्म अमिताभ जी की झोली में आ गई।  साल 1973 में आई ज़ंज़ीर ने आते ही बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया।  अमिताभ रातो रात सुपरस्टार अमिताभ बच्चन बन गए और साथ ही भारत को उनका पहला एंग्री यंग मैन मिल गया। 

सही मायनो में साल 1973 अमिताभ जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण साल रहा।  इसी साल 3 जून को अमिताभ और जया शादी के बंधन में बंध गए। इस साल ही उनकी दो और बड़ी फिल्मे आई , “अभिमान’ और “नमक हराम”। 

नमक हराम के लिए एक बार फिर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड अमिताभ बच्चन जी के नाम रहा। 

 

साभार: अमिताभ बच्चन ऑफिसियल इंस्टाग्राम अकाउंट

अमिताभ इरा की शुरुआत

अपने करियर के शुरूआती 10 सालो में ही ( 70s इरा ) अमिताभ ने जिन बुलिंदियो को छुआ , या यू कहे की उन्होंने जो Mile  Stone  सेट किये वो हासिल करना किसी भी कलाकार के लिए संभव नहीं था। 

अमिताभ की सफलता बिलकुल किसी परी कथाओ जैसी है जिसपर सहज ही विश्वास कर पाना बहुत मुश्किल होता है। 

रोटी कपड़ा और मकान (1974), चुपके चुपके (1975) , दिवार (1975) , शोले (1975), अमर अकबर एंथोनी (1977), कभी कभी (1976) , डॉन (1978) , त्रिशूल (1978),मुकद्दर का सिकन्दर (1978) ये सारी बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्मे 70 के दशक में अमिताभ के एकछत्र राज की कहानी बताती है।

मौत के मुँह से वापसी

सत्तर की सफलता का दौर अस्सी के दशक में भी बदस्तूर जारी रहा, मगर अस्सी के दशक की शुरुआत में साल 1982 अमिताभ पर बहुत भारी मुसीबत भी ले कर आया। 

1982 में कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान एक हादसा हो गया।  अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट सीन में अमिताभ  बहुत बुरी तरह चोटिल हो गए। उनकी पेट की आंते बुरी तरह जख्मी हो गई थी और बहुत खून भी बहा था।  उनको फ़ौरन इलाज़ के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया , जहाँ महीनो तक उनका इलाज़ चलता रहा।  इस दौरान कई बार उनकी मौत की अफवाह भी उडी , मगर करोडो भारतीयों की दुआ से वो इस जंग में भी जीत कर वापस आये। एक लम्बे समय के बाद वो दोबारा फिल्मो में आये। मगर महीनो तक हॉस्पिटल में रहने के बाद और बहुत अधिक दवाओं के सेवन के कारण अमिताभ मानसिक और शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गए थे। इस कारण अमिताभ ने राजनीति में जाने का फैसला किया।

राजनीति से वापस लौटा शहंशाह

साल 1984 में राजनीति में प्रवेश के बाद जल्द ही अमिताभ का राजनीति से मोह भांग हो गया और सिर्फ 3 साल बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। साल 1988 में अमिताभ ने शहंशाह फिल्म से बॉलीवुड में अपनी दमदार वापसी का एलान कर दिया।  इस फिल्म ने बॉक्सऑफिस पर जबरदस्त प्रर्दशन किया।  मगर शहंशाह के बाद दर्शको को वो अमिताभ नहीं मिला जिसको देखने के वो आदी थे। 

शहंशाह का सिंघासन अब डगमगाने लगा था, फिल्मे फ्लॉप होने लगी थी।  अमिताभ ने एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई ABCL लेकिन वो भी लगातार घाटे में रही और अमिताभ भारी कर्ज़े में डूबते चले गए।

साभार: अमिताभ बच्चन ऑफिसियल इंस्टाग्राम अकाउंट

महानायक की दूसरी पारी

नब्बे का दशक अमिताभ के लिए बर्बादी का दशक रहा।  लेकिन साल 2000 आते ही सब कुछ बदलने लगा।  कहते है की किस्मत भी उन लोगो का ही साथ देती है जो अपना साथ खुद देते है।  अपने बुरे दौर में अमिताभ ने कभी हार नहीं मानी और निरंतर मेहनत करते रहे। 

साल 2000 में भारत के घर घर में टीवी पर अमिताभ बच्चन का ” आइये अब शुरू करते है ये अद्भुत खेल कौन बनेगा करोड़पति ‘ सुनाई देने लगा।  फिर इसी साल ही आई मुहब्बते फिल्म ने अमिताभ को वापस उसी मुकाम पर पंहुचा दिया।  मगर इस बार एक एंग्री यंग मैन के रूप में नहीं , बल्कि के ऐसे कलाकार के रूप में जो उम्र के इस पड़ाव पर भी फिल्म का केंद्र बिंदु होता है।  जिसको सोच कर फिल्मे लिखी जाने लगी। 

सारांश

कौन बनेगा करोड़पति से 2000 में महानायक ने अपनी दूसरी पारी की जो शुरुआत की थी वो  मोहब्बतें (2000) , कभी ख़ुशी कभी ग़म (2001),अक्स (2001), आंखें (2002), खाकी (2004), देव (2004) और ब्लैक (2005),बंटी और बबली (2005),  सरकार (2005), कभी अलविदा ना कहना (2006), भूतनाथ (2008), पा (2009), बुड्ढा होगा तेरा बाप (2011), पीकू (2015), पिंक (2016), 102 नॉटआउट (2018), ब्रह्मास्त्र (2022) के साथ अभी भी अनवरत जारी है।  बिग बी के सभी चाहने वाले इस युग को कभी भी समाप्त होते हुए नहीं देख सकते।  अमिताभ के चाहने वालो के अंदर भी कही न कही किसी कोने में एक अमिताभ छिपा होता है , उनकी बातो में, हावभाव मे। वो हमेशा रहेगा।  कल भी था , आज भी है और कल भी रहेगा। करोड़ो सिने प्रेमियों की बस ये ही दुआ है की बिग बी हमेशा ऐसे ही उनका मनोरंजन करते रहे।  

हमारी शुभकामनये श्री अमिताभ बच्चन जी के लिए। 

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1969

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